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| Ekantik Vartalap |
प्रेमानन्द जी महाराज:-
नाम भगवान का... और वो अनंत है।
भगवान के नाम अनंत है।
जिसमें किसी भी तरह का कोई विधि निषेध नहीं है।
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
apavitraḥ pavitro vā sarvāvasthāṁ gato ’pi vā,
yaḥ smaret puṇḍarīkākṣaṁ sa bāhyābhyantaraḥ śuciḥ.भावार्थ:जो व्यक्ति भगवान कमलनयन (विष्णु) का स्मरण करता है, वह चाहे अपवित्र हो या पवित्र, किसी भी अवस्था में क्यों न हो - वह बाह्य और आंतरिक, दोनों रूप से शुद्ध हो जाता है।
मुख्य भाव:
ईश्वर का नाम ही सबसे बड़ा स्नान, सबसे बड़ा तप और सबसे बड़ी शुद्धि है।
वो और (नाम) अभ्यंतर से परम पवित्र रहता है। और इसमें सबका अधिकार है।
अहो बत स्वपचोऽतो गर्वान्य यज्जिह्वाग्रे वर्तते नाम तुभ्यम्।
तेपुस्तपस्ते जुहुवुः सस्नुरार्याः ब्रह्माणुचुर्नाम गृणन्ति ये ते॥aho bata śvapaco ’to garīyān
yajjihvāgre vartate nāma tubhyam,
tepus tapas te juhuvuḥ sasnur āryāḥ
brahmānūcur nāma gṛṇanti ye te.भावार्थ:अरे! कितना अद्भुत है कि यदि किसी नीच कुल में जन्मा व्यक्ति भी तेरे (भगवान के) नाम का उच्चारण करता है, तो वह भी महान बन जाता है।
निश्चय ही उसने सब प्रकार के तप, यज्ञ, स्नान और वेदाध्ययन कर लिया है - क्योंकि जो तेरे पवित्र नाम का जप करते हैं, वे ही सच्चे आर्य हैं।मुख्य भाव:
भगवान का नाम लेने मात्र से ही मनुष्य पवित्र और महान बन जाता है।
प्रेमानन्द जी महाराज:-
वो स्वपच भी सर्वश्रेष्ठ है। जिसकी जिभ्या के अग्र भाग पर भगवान का नाम है।
तो... जो नाम प्रिय लगे राम - कृष्ण - राधा - हरि ये सब भगवान के नाम है।
प्रश्नकर्ता:-
नाम जपने कोई... ऐसा कोई मंत्र उच्चारण नहीं है।
प्रेमानन्द जी महाराज:-
ऐसे मंत्र कोई बाजार है क्या... कि ऐसे खरीद ले... भगवान के नाम तो ठीक है
और मंत्र... गुरु से लिए जाते हैं। हां वो गुरु से लिया जाता है।
वो थोड़ी कि... बाजार है की क्वालिटी बताइए इसकी क्या है।
